शनिवार, 27 जून 2009

क्योंकि हकीकत जगजाहिर है.....

सपने देखे थे बंद आंखों से, अब सच हाजिर है
चुप्पी साध रखी है ख्वाबों ने, हकीकत जगजाहिर है
चले थे कही दूर देश से खुशियां और बढ़ाने
बची हुई चीजें समेट आया था आशियाना बनाने
हर लम्हा तब बदसूरत नहीं था दोस्तों
हर शख्श बेईमान नहीं था दोस्तों
पर, अब खामोश हैं सभी ख्वाब
यही सच है, क्योंकि हकीकत जगजाहिर है
तिनका-तिनका घरौंदा बनना चाहता है
धागा-धागा रेशम बनना सोचता है
हर सांस, मुकम्मल जिंदगी मांगता है
पर, मौत का साया हर वक्त डराता है
यही सच है, क्योंकि हकीकत जगजाहिर है
कोई एक आया था रकीब-रहबर बन कर
कई झोलों में लाख-हजार सपने भर कर
बिखेर दिये थे ख्वाबों को हकीकत बना कर
तभी कोई हवा का झोंका आया तूफान हो कर
तैरती रहीं कई टोपियां, जूते आसमान में
यही सच है, क्योंकि हकीकत जगजाहिर है
फिर से फिजां बदलेगी, मुस्कान लौटेगी
खिलखिलाती हंसी फिर से सजेगी
हर अक् स का फिर से अपना चेहरा होगा
कई बार वक्त बदलते देखा है
दरअसल एक सोच है,जो कभी हारती नहीं
जिंदगी बा जिंदगी यू ही चलती रहती है
बस, यही हकीकत है, और जगजाहिर है...
--प्रणव दत्त

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